शनिवार, 18 जून 2016

यादव संस्कृति


यादव संस्कृति

भारत में अवस्थित जितनी जातियां हैं उनमें यादवों और ब्राह्मणों का इतिहास सबसे पुराना है। प्राचीनतम वैदिक युग से ही हमें यादव वंश के अस्तित्व का परस्पर प्रमाण मिलता है।
रामलखन सिंह यादव के कथनानुसार काल के इस त्रिधा विभाजन - प्राचीनमध्य एवम आधुनिक काल पर परम भगवान श्री कृष्ण की त्रिभंगी मूर्ति का ही प्रभाव है | काल यष्टि पर कृष्ण त्रिभंगी मूर्ति का पक्षेप ही अनंत काल का त्रिधा विभाजन प्राचीन काल,मध्यकाल और आधुनिककाल के रुप में हुआ है। अन्य जातियां अधिकतर मध्यकाल से अपना उल्लेख पा सकीं है लेकिन यह यादव जाति इस मायने में वैदिक जाति है कि इसके वंश का उल्लेख वेदों में भी मिलता है। सच पूछा जाये तो यादव जाति ही आर्य जाति-समूह आर्यन एथोनस का मेरुदण्ड है। डॉ. राजबली पांडेयराहुल सांकृत्यानडॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, आदि भारतीय विद्वानों ने इसे स्पष्टत: स्वीकार किया है कि आर्य-रक्त की सर्वाधिक शुद्धता यादवों में ही रक्षित है। चूंकि अमरकोण में एवं अन्य ग्रंथों में भी आभीर, गुर्जरजाट का समान धर्म जाति के रूप में उल्लेख किया गया है इसलिए यादव को जाति के साथ ही एक संजाति समूह कहना अतिश्योक्ति नहीं है। आभीर (अहीर) और गुर्जर के अलावा जाट प्रभृत्ति अनेक ऐसी जातियां है जिन्हें इस संजाति -समूह प्रजाति के अंश रुप में स्वीकार किया जा सकता है।
जब किसी जाति का वर्चस्व साहित्य में निहित रहता है तो उसे केवल इतिहास के उल्लेख से अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि विशेष से इतिहास लिखा जा सकता है। मध्यकालीन संगी 'अहीर टोड़ी,  'अहीर-वैभव’ जैसे रागभारतीय  द्वंद्व शास्त्र में वर्णित  'अहीर – छंद’ जैसा द्वंद्व लोक नृत्यों के बीच मध्यप्रदेश के बिलासपुर क्षेत्र में प्रचलित'राउत नृत्य’ जैसे लोक नृत्य इत्यादि इसके सैकड़ों प्रमाण है। 
मध्यकालीन चित्रकला में राजपूत-शैली, कांगड़ा-शैली, बसोइली शैली इत्यादि के चित्रों में अंकित नारी-छवियां मूलत: ब्रज वनिताओं से ली गई है। यदि रांग-अनुरागी,यादव-संस्कृति भारत में नहीं रही होती तो शायद बिहारी के ललित दोहे भी नहीं होते क्योंकि रागात्मक भाव ही किसी भी रचनाकार की रचना प्रक्रिया को उदीप्त करती है।
एक उज्र्जस्वी जाति  के होने के कारण यादवों का इतिहास और यादव साहित्य भी सिर्फ उज्जवल ही नहीं है बल्कि इसका भूगोल भी अत्यंत विस्तृत रहा है। 'देवगिरी’ के यादव राजा,  मैसूर का राजा 'चर्मराज वाडियार’ इत्यादि से लेकर नेपाल में कुछ शताब्दी पूर्व तक यादवों का ही राज्य रहा। कलचुरियोंहोयसलोंसातवाहनोंचेदिराज्यों,पल्लव आदि महान जनपदों के शासक अल्प अन्तरालों को छोड़कर मूलत: यादव ही थे।
प्रत्येक देश के प्रागैतिहासिक काल में पौराणिक कथा का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान होता है और पौराणिक कथा इसी के सहारे इतिहास से पहले पुराण बनता है। इसे भारत भी प्रमाणित करता है। अट्ठारह पुराणों वाला यह देश-पुराण चेतना का इतना धनी है कि आज भी भारत में पौराणिक-अध्ययन विश्लेषण अपनी इति पर नहीं पहुंच सका है। यहां यह उल्लेखित है कि तीन-चार पुराणों को छोड़कर शेष पुराणों में इन्हीं यादवों का वर्चस्व का उद्घोष है। आज इस राष्ट्र की जिस भावनात्मक एकता की बात करते हैं और चार महातीर्थों के माध्यम से संपूण्र भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधने का श्रेय श्री शंकराचार्य को देते हैं। उसके आदि-प्रवर्तक सचमुच में भगवान कृष्ण ही थे। आधुनिक भारतीय नेताओं में विलक्षण प्रतिभा के धनी राममनोहर लोहिया ने भगवान श्री कृष्ण पर लिखित अपने'महाप्रबंधक’ में भी श्री कृष्ण को ही राष्ट्र निर्माता रूप के रूप में प्रमाण-सहित स्थापित किया है। यदि यादव जाति इस महिमा मंडित रुप में नहीं रही होती तो शायद हमें वह महाभारत भी नहीं मिल पाता जिस महाभारत के बारे में यह सूक्ति बहुधा चर्चित है 'यत्र भारते तन्न भारते है।
हिन्दू जातियां और आर्येत्तर जातियों की महागाथा ही महाभारत है। उसमें जो वंश वृक्ष प्रस्तुत किया गया है वह सोपान मूलक केन्द्रापगामी और बहुमुखी होने के बावजूद यादव बीज को ही वंश मूल के रुप में स्वीकार करता है। इतना ही नहीं यादव जाति और यादव कथा ने इस देश को भक्ति का अवदान दिया है। प्रसिद्ध विद्वान शेरदान ने भक्ति को सामूहिक अवचेतना में विकसित होने वाली हर्षोन्माद की संज्ञा दी है। यह श्रेय यादवों को ही है। जिन्होंने इसके पौराणिक काल से लेकर आधुनिक काल तक में दर्शन और साहित्य में प्रतिष्ठित किया है।
भारतीय साहित्य के परिवृत्त में जो प्राचीन हिन्दू-संस्कृति रही है उसका केन्द्र गौ रहा है। गो-धन की पूजागोबर की पूजागो-दान वृषवशीकरण इत्यादि अनेक ऐसे हिन्दू धार्मिक कृत्य है जिसमें घूम-फिर कर गौमाता ही हमारे सामने आती है। आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य के शीर्ष शिल्पी प्रेमचंद की सर्वोत्तम कृति को भी गौ से जुडऩा पड़ा जिसे उन्होंने'गोदान’ के रूप में उपस्थित किया। यह कम गौरव की बात नहीं है कि बहुआयामी संस्कृति महत्व से मंडित इस गौ के रक्षक पोषक और चारक यादव लोग रहे। इससे अधिक महत्व की बात यह है कि यादवों ने वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक भारत की साहित्य संगीत एवं अन्य कलाओं को-प्रभावित किया है।

यादव आरम्भ से ही पराक्रमी एवं स्वतंत्रता प्रिय जाति रही है। यूरोपीय वंश में जो स्थान ग्रीक व रोमन लोगों का रहा हैवही भारतीय इतिहास में यादवों का है। आजादी के आन्दोलन से लेकर आजादी पश्चात तक के सैन्य व असैन्य युद्धों में यादवों ने अपने शौर्य की गाथा रची और उनमें से कई तो मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो गये। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरूद्ध सर्वप्रथम 1739 में कट्टलापुरम् (तमिलनाडु) के यादव वीर अलगमुत्थू कोण ने विद्रोह का झण्डा उठाया और प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के गौरव के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यादवों ने प्रमुख भूमिका निभाई। बिहार में कुँवर सिंह की सेना का नेतृत्व रणजीत सिंह यादव ने किया। रेवाड़ी (हरियाणा) के राव रामलाल ने 10 मई 1857 को दिल्ली पर धावा बोलने वाले क्रान्तिकारियों का नेतृत्व किया एवं लाल किले के किलेदार मिस्टर डगलस को गोली मारकर क्रान्तिकारियों व बहादुर शाह जफर के मध्य सम्पर्क सूत्र की भूमिका निभाई। 1857 की क्रांति की चिंगारी प्रस्फुटित होने के साथ ही रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम भी बिना कोई समय गंवाए तुरन्त हरकत में आ गये। उन्होंने रेवाड़ी में अंग्रेजों के प्रति निष्ठावान कर्मचारियों को बेदखल कर स्थानीय प्रशासन अपने नियन्त्रण में ले लिया तथा दिल्ली के शहंशाह बहादुर शाह ज़फर के आदेश से अपने शासन की उद्घोषणा कर दी। 18 नवम्बर 1857 को राव तुलाराम ने नारनौर (हरियाणा) में जनरल गेरार्ड और उसकी सेना को जमकर टक्कर दी। इसी युद्ध के दौरान राव कृष्ण गोपाल ने गेरार्ड के हाथी पर अपने घोड़े से आक्रमण कर गेरार्ड का सिर तलवार से काटकर अलग कर दिया। अंग्रेजों ने जब स्वतंत्रता आन्दोलन को कुचलने का प्रयास किया तो राव तुलाराम ने रूस आदि देशों की मदद लेकर आन्दोलन को गति प्रदान की। 

अंततः सितम्बर 1863 को इस अप्रतिम वीर का काबुल में देहांत हो गया। वीर-शिरोमणि यदुवंशी राव तुलाराम के काबुल में देहान्त के बाद वहीं उनकी समाधि बनी जिस पर आज भी काबुल जाने वाले भारतीय यात्री बडी श्रद्धा से सिर झुकाते हैं और उनके प्रति आदर व्यक्त करते हैं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राव तुलाराम के अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 23 सितम्बर 2001 को उन पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया।

यादवों ने वृष्णि वंशियों के रुप में भारत में गणतंत्र की पहली परिकल्पना दी। गीता जैसा महान ग्रंथ दिया और अद्भुत स्थापत्य कला का नमूना दिया। जिसे अब शासनिक प्रयत्न के द्वारा द्वारिका धाम में ढूंढा जा रहा है। यादवों ने राष्ट्र की सभी मुख्य धाराओं में अपने को सदा से शामिल रखते हुए भारत की एकता-अखंडता के लिए तरह-तरह के जोखिम उठाएं है। इसी तरह साहित्यकला, , विज्ञानखेलकूद आदि विविध क्षेत्रों में यादव प्रतिभाएं देश के मान सम्मान को उजागर कर रही है। उनके बारे में लिखा जाना चाहिए उन्हें-सम्मानित किया जाना चाहिए।

समाज-राजनीति-प्रशासन-साहित्य-संस्कृति इत्यादि तमाम क्षेत्रों में यादव समाज के लोग देश-विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं. इनमें से कई ऐसे नाम और काम हैं जो समाज के सामने नहीं आ पाते. या यूँ कहें कि उन्हें ऐसा कोई मंच नहीं मिलता जिसके माध्यम से वे और उनकी उपलब्धियाँ सामने आयें. यादव समाज पर केन्द्रित कुछेक पत्र-पत्रिकाएं जरुर प्रकाशित हो रही हैंपर नेटवर्क और संसाधनों के अभाव में उनकी पहुँच काफी सीमित है. तमाम मित्रों और बुद्धिजीवियों का भी आग्रह था कि अंतर्जाल के इस माध्यम का इस दिशा में उपयोग किया जायऐसे में यह प्रयास आपके सामने है |

भारत में यादवों के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक आन्दोलन –
अभीर राजवंश के अंतिम शासक राव बहदुर बलबीर सिंह जी ने यादवों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक चेतना क अलख जगाने हेतु 1910 ई० में अहीर यादव क्षत्रिय महासभा का गठन किया| इस संगठन ने यादवों को उनके गौरवमय इतिहास से परिचित करवाने का कम किया| इसके माध्यम से उन्हें बताया गया की वे क्षत्रिय राजा यदु के वंशज है तथा वर्ण व्यवस्था में वे क्षत्रिय हैं| 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राजा राव तुला राम तथा उनके निकट सहयोगी प्राण सुख यादव ने अपने वीरता एवं शौर्य से साबित कर दिया की अभीर जाति के लोग अच्छे लड़ाके होते हैं| अहीर यादव क्षत्रिय महासभा ने अनेक शाखाओं एवं उपजातियों में विभक्त यादवों को एक छतरी के नीचे लाने का काम किया| इसने यादव अहीर समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, कुरीतियों तथा बाल विवाह जैसे सामाजिक कुप्रथाओं को मिटाने का काम किया| राव बलबीर सिंह ने यादवों को गो रक्षा एवं जनेऊ पहनने के लिए प्रेरित किया|  जिसके लिए बिहार में यादवों का भूमिहारों एवं राजपूतों के साथ हिंसक झड़प भी हुई|
विट्ठल कृष्ण जी खेतकर ने 1924 में देश के अन्य गणमान्य यादवों के साथ मिलकर इलाहाबाद में अखिल भारतीय यादव महासभा का गठन किया| अखिल भारतीय यादव महासभा भारत सरकार से भारतीय सेना में यादव रेजिमेंट बनाने की मांग करती रही है| 1966 में अखिल भारतीय यादव महासभा का बैठक इटावा में किया गया| जिसमे मुलयम सिंह यादव स्वागत समिति के अध्यक्ष तथा रेवारी के राजा श्री राव बिरेन्द्र सिंह को सभापति चुना गया|
बिहार में शेरे बिहार स्व० रामलखन सिंह यादव ने अखिल भारतीय यादव महासभा के माध्यम से यादवों में सामाजिक एवं राजनैतिक एकता लाने का प्रयास किया|

List of Presidents of All India Yadav Mahasabha India
Date
Place
Name of President
April, 1924
Purnea, Bihar
Choudhary Badan Singh, MLC (UP)
3rd April, 1925
Gorakhpur, UP
Dr. R.V Khedkar, MD (Maharastra)
3rd Dec,1925
Chhapra, Bihar
Kanhyalal Yadav, LLB (MP)
4th April, 1927
Rewari, Punjab
Rai Saheb Ballav Das (Bihar)
5th December, 1927
Dalmau, UP
Rai Bahadur Durga Prasad (Delhi)
December, 1928
Calcutta, Bengal
Rai Bahadur Singh (Rewari, Punjab)
December, 1929
Beneras, UP
Sundar Singh
December, 1930
Gaya, Bihar
Rai Saheb Baldeb Singh
December, 1931
Balia, UP
Swambar Das, BA, BEd (Bihar)
December, 1933
Jabbalpur, MP
Sharat Chandra Das, BA, BL (Bengal)
December, 1934
Fategarh, UP
Behari Shankar Dalata, BE, AMIE (Maharastra)
December, 1936
Busar, Bihar
Sarajn Prasad Kashyap (MP)
December, 1939
Calcutta, Bengal
Nabadeep Chandra Ghosh, MA, BL (Bihar, Patna)
December, 1944
Patna, Bihar
Rao Suchet Singh (Delhi)
December, 1945
Sirsa, Allahabad, UP
Sewnath Prasad Yadav (Bihar)
December, 1946
Lucknow, UP
Kedar Nath Roshan (MP)
December, 1947
Benaras, UP
Adv Kedar Nath Roshan (MP)
December, 1950
Cuttack, Orissa
Nabadeep Chandra Ghosh, MA, BL (Bihar, Patna)
December, 1951
Kanpur, UP
Rao Gopilal Yadav, Jaipur
December, 1954
Motihari, Bihar
Choudhary Raghubir Singh (Agra, UP)
December, 1955
Gazipur, UP
Lachmi Prasad Rawat (Calcutta, Bengal)
December, 1956
Barh, Bihar
Choudhary Ram Gopal Singh (Kanpur, UP)
December, 1957
Calcutta, Bengal
Rao Birendra Singh (Rewari, Hariyana)
December, 1959
Deoria, UP
Rao Birendra Singh (Hariyana)
December, 1960
Bombay, Maharastra
Durga Prasad Singh (Calcutta, Bengal)
December, 1962
Rai Bareily, UP Adv.
Srimanta Narayan Khirahari (Bhagalpur, Bihar)
December, 1964
Muzaffarpur, Bihar
Choudhary Ram Gopal Singh (Kanpur, UP)
December, 1965
Patna, Bihar
Rao Birendra Singh (Rewari, Hariyana)
December, 1966
Delhi
Rao Birendra Singh (Rewari, Hariyana)
December, 1967
Etawa, UP
Rao Birendra Singh (Rewari, Hariyana)
December, 1968
Hyderabad, AP
Mohit Mohan Ghosh (Calcutta, West Bengal)
December, 1969
Gwalior, MP
Adv. Banowari Lal Yadav (Allahabad, UP)
December, 1969
Gwalior, MP
Adv. Banowari Lal Yadav (Allahabad, UP)
December, 1972
Indore, MP
S. Gopal Krishna Yadav (Madras, Tamil Nadu)
December, 1974
Maduri, Tamil Nadu
Mohit Mohan Ghosh (Calcutta, West Bengal)
December, 1978-80

Bindeshwari Prasad Singh (Bihar)
December, 1980-83
Mathura, UP
Cap Harmohan Singh (Delhi)
December, 1983
Madras, Tamil Nadu
Shyamlal Yadav MP (UP)
December, 1984
Jabalpur, MP
Shyamlal Yadav MP (UP)
December, 1986
Durg, MP
Ram Laxman Singh Yadav (Bihar)
December, 1989
Bangalore, Karnataka
Shyamlal Yadav MP (UP)
December, 1994
Hyderabad, UP
Cap Harnam Singh (Delhi)
December, 1995
Surat, Gujarat
Cap Harmohan Singh (Delhi)
2005-2007

D. Nagendhiran (Tamil Nadu)
December, 2007

Udai Pratap Singh Yadav. MP
1930 में यादव, कुर्मी एवं कोयरी समाज ने मिलकर त्रिवेणी संघ नामक राजनैतिक पार्टी बनाई, जो 1937 के चुनाव में बुरी तरह विफल रही|
यादव इतिहास लिखने का प्रथम सम्यक प्रयास उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में एक विद्यालय शिक्षक श्री विट्ठल कृष्ण जी खेतकर द्वारा हुआ, जो बाद में एक महाराजा के निजी सचिव बने| खेतकर के अधूरे कार्य को उनके सर्जन पुत्र रघुनाथ विट्ठल खेतकर ने पूर्ण किया| उन्होंने उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक को “द divine हेरिटेज ऑफ़ यादव” के नाम से प्रकाशित किया| उनके इस कार्य एवं सोच को विद्वान् एवं इतिहासकार श्री के. सी. यादव तथा जे. एन. सिंह यादव ने आगे बढाया|
वर्तमान में सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव प्राप्त करने के लिए समान जातियों में एकता लाने का प्रयास अखिल भारतीय यादव महासभा के माध्यम से  हो रहा है | जिसके माध्यम से पशुपालकों की अनेक जातियां जैसे अहीरअहारग्वालागोल्लागोप,में एक हो जाने की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है। इसी तारतम्य में 1941 में एक व्यापक जन आंदोलन चला, इंडेयन आदि जातियों में एकता का भाव आया और इन सबने अपना एक सम्मिलित नाम 'यादव’ माना। उक्त भारत की गोपालक जातियां अहीरोंगोड़वालोंगोपों आदि ने भी ऐसा ही किया और अपने को मूल राजपूत कहा। किन्तु यह कहना कठिन है कि इस आंदोलन में उपजी एकता के फलस्वरूप आपस में किस सीमा तक विवाह कर सकेंगे |
साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में यदुवंशी

किसी भी वर्ग के निरंतर उन्नयन और प्रगतिशीलता के लिए जरूरी है कि विचारों का प्रवाह हो। विचारों का प्रवाह निर्वात में नहीं होता बल्कि उसके लिए एक मंच चाहिए। राजनीति-प्रशासन-मीडिया-साहित्य कला से जुड़े तमाम ऐसे मंच हैंजहां व्यक्ति अपनी अभिव्यक्तियों को विस्तार देता है। आधुनिक दौर में किसी भी समाज राष्ट्र के विकास में साहित्य और मीडिया की प्रमुख भूमिका हैक्योंकि ये ही समाज को चीजों के अच्छे-बुरे पक्षों से परिचित करने के साथ-साथ उनका व्यापक प्रचार-प्रसार भी करती है। व्यवहारिक तौर पर भी देखा जाता है कि जिस वर्ग की मीडिया- साहित्य पर जितनी मजबूत पकड़ होती हैवह वर्ग भी अपनी बुद्धिजीविता के बल पर उतना ही सशक्त और प्रभावी होता है और लोगों के विचारों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता है। तमाम राजनैतिक-प्रशासनिक-सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत यदुवंशियों ने इस क्षेत्र में समय-समय पर अलख जगाई है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रहे देवनन्दन प्रसाद यादवचन्द्रजीत यादव इत्यादि ने वैचारिक स्तर पर भी लोगों को जागरु करने का प्रयास किया। ललई सिंह यादव के नाम से भला कौन परिचित होगा। कानपुर देहात में जन्में ललई सिंह यादव (सितम्बर 1911 से फरवरी 1993)को उत्तर भारत का पेरियार कहा जाता है। ललई सिंह ने वैचारिक आधार पर सवर्ण वर्चस्व का विरोध किया और साहित्य के व्यापक प्रचार-प्रसार द्वारा पिछड़ों दलितों में चेतना जगाई। पेरियार ने अपनी पुस्तक  'द रामायण ए टू रीडिंग’ के उत्तर भारत में प्रकाशन का जिम्मा ललई सिंह यादव को सौंपा और उन्होंने इसे 'सच्ची रामायण’ नाम से प्रकाशित किया। पुस्तक प्रकाशित होते ही हड़कम्प मच गया और  8सितम्बर 1969 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसे जब्त करने का आदेश पारित कर दिया गया। अन्तत: इस प्रकरण पर लम्बा मुकदमा चला और हाईकोर्ट व सुप्रीकोर्ट से ललई सिंह यादव की जीत हुई। प्रखर सामाजिक क्रांतिकारी ललई सिंह अम्बेडकर व पेरियार से काफी प्रभावित थे और दबीपिछड़ीशोषित मानवता को उन्होंने सच्ची राह दिखाई।
यादव समाज से जुडे तमाम बुद्धिजीवी देश कोने-कोने से पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन/ संपादन कर रहे हैं। जरूरत है कि इनका व्यापक प्रचार-प्रसार हो और इनके पाठकों की संख्या में भी अभिवृद्धि हो। यदि भारत में आज हिन्दी साहित्य जगत के मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाये तो सर्वप्रथम राजेन्द्र यादव का नाम सामने आता है।  कविता से शुरुआत करने वाले राजेन्द्र यादव आज अन्य विधाओं में भी निरंतर लिख रहे हैं। राजेन्द्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामंती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। कविता में ब्राह्मणों का बोलबाला पर भी वे बेबाक टिप्पणी करने के लिए मशहूर है। मात्र 13-14 वर्ष की उम्र में जातीय अस्मिता का बोध राजेन्द्र यादव को यूं प्रभावित कर गया कि उस उम्र में 'चंद्रकांता’ उपन्यास के सारे खण्ड वे पढ़ गये और देवगिरी साम्राज्य को लेकर तिलिस्मी उपन्यास लिखना आरंभ कर दिया। दरअसल देवगिरी दक्षिण में यादवों का मजबूत साम्राज्य माना जाता था। साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थेतब राजेन्द्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'हंस’ का पुनप्र्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। आज भी 'हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है न जाने कितनी प्रतिभाओं को उन्होंने पहचानातराशा और सितारा बना दियातभी तो उन्हें हिन्दी साहित्य का 'द ग्रेट शो मैन’ कहा जाता है।
राजेन्द्र यादव के अलावा मराठी में ग्रामीण साहित्य को नई दिशा देने वाले एवं1990 में उपन्यास ‘जॉम्बी’ के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित मराठी साहित्यकार आनंद यादव, शोध पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव,अखिल भारत वर्षीय यादव महासभा के अध्यक्ष व पूर्व सांसद कविवर उदय प्रताप सिंह यादवसमालोचक वीरेन्द्र यादव (लखनऊ)वरिष्ठ बाल साहित्यकार स्वर्गीय चन्द्र पाल सिंह यादव 'मयंक’ (कानपुर) की सुपुत्री प्रसिद्ध साहित्यकार उषा यादव (आगरा) 30 वर्ष की उम्र में ही पाँच कृतियों की अनुपम रचना और व्यक्तित्व-कृतित्व पर जारी पुस्तक 'बढ़ते चरण शिखर की ओर’ से चर्चा में आये भारतीय डाक सेवा के अधिकारी एवं युवा साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव (आजमगढ़) व उनकी पत्नी साहित्यकार आकांक्षा यादववरिष्ठ समालोचक व कथाकार गोवर्धन यादव (छिंदवाड़ा)वरिष्ठ कवि व गजलकार केशव शरण (वाराणसी) कथाकार अनिल यादव (लखनऊ)शाइरा उषा यादव (इलाहाबाद)युवा कहानीकार योगिता यादव (जम्मू कश्मीर) जैसे तमाम लोग साहित्य के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय हैं। यादवों द्वारा तमाम पत्र-पऋिकाओं में राजेन्द्र यादव (हंस)डॉ. शोमनाथ यादव (प्रगतिशील आकल्प),डॉ. कालीचरण यादव (मड़ई)योगेन्द्र यादव (सामयिक वार्ता)प्रो. अरुण कुमार (वस्तुत:) जगदीश यादव (राष्ट्रसेतु एवं छत्तीसगढ़ समग्र) मांघीलाल यादव (मुक्तिबोध)आर.सी. यादव (शब्द)गिरसंत कुमार यादव (प्रगतिशील उद्भव),पूनम यादव (अनंता)डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव (कृतिका)डॉ. सूर्यदीन यादव (साहित्य परिवार)डॉ. अशोक अज्ञानी (अमृतायन)रामचरण यादव (नाजनीन),श्यामल किशोर यादव (मंडल विचार)डॉ. रामआशीष सिंह (आपका आईना)प्रेरित प्रियंत (प्रियंत टाइम्स)रमेश यादव (डगमगाती कलम के दर्शन)ओमप्रकाश यादव (दहलीज)सतेन्द्र सिंह (हिन्द क्रांति)आनंद सिंह यादव (स्वतंत्रता की आवाज),पल्लवी यादव (सोशल ब्रेनवाश)नंदकिशोर यादव (बहुजन दर्पण) का नाम लिया जा सकता है।
इसके अलावा यादव समाज पर भी तमाम पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। यादव समाज पर आधारित सबसे पुरानी पत्रिका 'यादव’  है। बताते हैं कि राव दलीप सिंह शिकोहाबाद से 'आभीर’ समाचार पत्र का प्रकाशन करते थे। उनके बाद राजित सिंह यादव ने इसे गोरखपुर से प्रकाशित करना आरम्भ किया। 1923-24 में अखिल भारतीय यादव महासभा का गठन होने पर राजित सिंह ने 'आभीर’ का नाम 'यादव मित्र’ कर दिया और 1925 में पत्रिका का नाम 'यादव’ हो गया। 1927 में राजित सिंह ने बनारस में एक प्रेस खरीदकर वहाँ सेयादव’ को प्रकाशित करना आरम्भ किया। 'यादव’ अखिल भारतीय यादव महासभा की वैधानिक पत्रिका थी पर राजित सिंह के स्वर्गवास के बाद उनके पुत्र धर्मपाल सिंह शास्त्री ने इसे 'यादव ज्योति’ के रूप में निकालना प्रारंभ किया। इन पत्रिकाओं में बनारस से यादव ज्योति संपादक लालसा देवीबनारस से ही अब बन्द हो चुकी यादवेश (संपादक स्व. मन्नालाल अभिमन्यु)दिल्ली से यादव कुलदीपिका (संपादक- चिरंजी लाल यादव)आगरा से यादव निर्देशिका सह पत्रिका (संपादक- सत्येन्द्र सिंह यादव)गाजियाबाद से यादवों की आवाज (संपादक डॉ. के.सी. यादव)सीतापुर से यादव शक्ति (संपादक राजबीर सिंह यादव)नोएडा से यादव दर्पण (संपादक एस.एन. यादव) एवं तमिलनाडु से नामाधु यादवम् उल्लेखनीय है। यादवों से जुड़े विभिन्न विषयों पर स्वामी सुधानन्द योगीफ्ला. ले. रामलाल यादवअनिल यादवप्रो. आनंद यादव इत्यादि की पुस्तकें भी महत्वपूर्ण हैं। यादवों से जुड़े विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा समय-समय पर जारी स्मारिकाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।
अन्तर्जाल पर यादवों से जुड़ी पत्रिका 'यदुकुल’  का संचालन रामशिव मूर्ति यादव द्वारा कुशलता के साथ किया जा रहा है। प्रिंट मीडिया की जहाँ अपनी सीमाएं है वहीं इंटरनेट के माध्यम से यादवों के बीच संवाद आसानी से किया जा सकता है। पटना से वीरेन्द्र सिंह यादव ने साप्ताहिक पत्रिका आह्वान का संपादन नेट पर आरंभ किया है। अन्तर्जाल पर शब्द सृजन की ओर डाकिया डाक लाया (कृष्ण कुमार यादव)शब्द शिखर उत्सव के रंग (आकांक्षा यादव) युवा (अमित कुमार यादव) सार्थक सृजन (सुरेश कुमार यादव) पाखी की दुनिया (अक्षिता)हारमोनियम (अनिल यादव)नव सृजन (रश्मि सिंह)मानस के हंस (अजय यादव)चाय घर (ब्रजेश)आवाज यादव की (डॉ. रत्नाकर लाल)यादव जी कहिन (नवल किशोर कुमार)डॉ. वीरेन्द्र (डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव)मुझे कुछ कहना है (गौतम यादव) इत्यादि ब्लाग यदुवंशियों द्वारा संचालित है। मीडिया एवं साहित्य के क्षेत्र में तमाम चर्चित-अचर्चित यादव कुशलता से कार्य कर रहे हैं। इंडिया टुडे के श्याम लाल यादव व राहुल यादवशुक्रवार के सिंहासन यादवगृहलक्ष्मी की सहकार्यकारी संपादक अर्पणा यादवदैनिक आज कानपुर के संपादक रामअवतार यादवइलेक्ट्रानिक मीडिया में आईबीएन-के विक्रांत यादवस्टार न्यूज की विनीता यादव, सहारा समय उ.प्र. के अनिरुद्ध सिंह यादवईटीवी उ.प्र. के आशीष सिंह यादव इत्यादि के नाम देखे सुने जा सकते हैं। इसके अलावा साहित्य की तमाम विधाओं में समय-समय पर उषा यादव (इलाहाबाद)मीरा यादव (जबलपुर)अरुण यादव (जबलपुर)रचना यादव (अहमदाबाद)कौशलेन्द्र प्रताप यादव (उ.प्र.) इत्यादि की रचनाएं पढ़ी जा सकती हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र यादव की नृत्यांगना सुपुत्री रचना यादव अच्छा नाम कमा रही हैं। इसी प्रकार कला के क्षेत्र में सुबाचन यादवरत्नाकर लाल एवं प्रभु दयाल इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। रत्नाकर लाल प्रतिष्ठित पत्रिका 'हंस’ के रेखांकन से भी जुड़े हुए हैं। निश्चित: तमाम यदुवंशी देश के कोने-कोने में साहित्य-संस्कृति व कला की अलख जगाये हुए हैं और वैचारिकता को धार दे रहे हैं |
यादवों का धार्मिक सत्ता –
राज्य एवं जागीर के अतिरिक्त यादवों को उनकी धार्मिक शक्ति के कारण धार्मिक पीठ (सीट) भी प्रदान की गई थी| आँध्रप्रदेश के वारंगल के यादवों को चौदह पीठ का सनद प्रदान किया गया था| शक संवत 1425 के सनद के अनुसार वारंगल के राजा श्री रूद्र प्रताप ने श्री कोंदिया गुरु को इन चौदह पीठों का प्रमुख बनाया था|
      बाद में जब 1560 ई० कुतुबशाही सुल्तान अब्दुल्ला ने भाग्यनगर की स्थापना किये, तब भी उन्होंने यादवों के धार्मिक महत्ता एवं प्रभुता को स्वीकार करते हुए मनुगल का नाम परिवर्तित कर गोलकुंडा रखा| हिजरी संवत 1701 के चार्टर के अनुसार कुतुबशाही वंश के सुल्तान अब्दुल्ला ने माना की गोलकुंडा किला का निर्माण कोंडिया गुरु द्वारा उनकी अद्भुत शक्ति एवं रहस्यमय ज्ञान से किया गया है| श्री कोंडिया गुरु ने अपने रहस्मय ज्ञान से उन्हें छिपा हुआ खजाना भी दिलाया | इसके बदले में सुल्तान ने उन्हें 14 पीठ का प्रधान नियुक्त किया| इन चौदह पीठों में 12 पीठ गोल्ला को तथा 02 पीठ कुरुबा गोल्ला को प्रदान किया गया|
स्पोर्ट्स-एडवेंचर में नाम कमाते यदुवंशी

खेल एवं एडवेंचर की दुनिया में भी यदुवंश के तमाम खिलाड़ी अपना डंका बजा रहे हैं। क्रिकेट के क्षेत्र में एन० शिवलाल यादवहेमू लाल यादवविजय यादवज्योति यादवजे0पीयादव और उमेश यादव, रविन्द्र जडेजा ने देश को गौरवान्वित किया तो आज हरियाणा की अण्डर-19 किक्रेट टीम के कोच विजय यादव0प्रकी अण्डर-16किक्रेट टीम के कोच विकास यादव जैसे तमाम नए नाम उभर रहे हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उपाध्यक्ष एन० शिव लाल यादवदक्षिण ज़ोन का प्रतिनिधित्व करते हैं और सीनियर टूर्नामेंट कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। दक्षिण ज़ोन की महिला समिति में विद्या यादव भी शामिल है, ज़ो कि आई०सी०सी० महिला टी-20 विश्व कप क्रिकेट की टीम मैनेजर भी रहीं। भारत की टेस्ट और वन डे टीम में खेल चुके विजय यादव 1996 से क्रिकेट कोचिंग दे रहे हैं। उन्हें बीसीसीआई की तरफ से विकेट कीपिंग एकेडमी का कोच भी नियुक्त किया गया है। आई0पी0एलके विभिन्न सत्रों में भी विभिन्न यादव क्रिकेट हेतु चयनित हुए। लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव का चयन अण्डर-19 किक्रेट टीम हेतु किया गया एवं आई0पी0एल0-20 कप के प्रथम सत्र में डेयर डेविल्स (दिल्ली) टीम में चयनित किया गयादुर्भाग्यवश उन्हें खेलने का मौका नहीं मिला। इसी प्रकार पूर्व टेस्ट खिलाड़ी एन० शिव लाल यादव के पुत्र एवं हैदराबाद रणजी कप्तान अर्जुन यादव का चयन डेक्कन चार्जस (हैदराबाद) में किया गया। आई0पी0एलके तीसरे सत्र में केदार जाधव व उमेश यादव (दिल्ली डेयरडेविल्स) एवं अर्जुन यादव (हैदराबाद डेक्कन चार्जर्स) का चयन किया गया। आई0पी0एलमैचों के दौरान ही नागपुर (महाराष्ट्र) के नजदीक खापरखेड़ा की कोयला खदान के मजदूर के बेटे उमेश यादव (दिल्ली डेयरडेविल्स) एक शानदार गेंदबाज के रूप में उभरे एवं उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में भी खेलने का मौका मिला। उत्तर प्रदेश रणजी क्रिकेट टीम में आशीष यादव नया चेहरा है। बॉलीवुड के जाने माने-हास्य कलाकार राजपाल यादव टी-10 गली क्रिकेट सीजन-के लिए कानपुर गली क्रिकेट टीम के मालिक बन गए हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश क्रिकेट की अण्डर-19 महिला टीम में आगरा की पूनम यादव को कप्तानी सौंपी गई है। नेशनल क्रिकेट अकादमी बंगलौर में इंडिया क्रिकेट टीम के फिजिकल ट्रेनर के रूप में किशन सिंह यादव बखूबी दायित्वों का निर्वाह करते रहे हैं।
       भारत के प्रथम व्यक्तिगत ओलंपिक मेडलिस्ट खाशबा दादा साहब जाधव एवं बीजिंग ओलंपिक (2008) में कुश्ती में कांस्य पदक विजेता सुशील कुमार यदुकुल की ही परम्परा के वारिस हैं। वर्ष 2010 में कुश्ती का विश्व चैंपियन खिताब अपने नाम करके सुशील कुमार ऐसा करने वाले प्रथम भारतीय पहलवान बन गए। वर्ष 2009 में सुशील कुमार को देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गाँधी खेल रत्न से नवाजा गया तो गिरधारी लाल यादव (पाल नौकायन) को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी परंपरा में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में जहाँ सुशील कुमार ने कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतावहीं 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल कुश्ती स्पर्धा में नरसिंह यादव पंचम (मूलतः चोलापुरबनारस केअब मुंबई में) ने भी स्वर्ण पदक जीता। गौरतलब है कि इससे पूर्व सीनियर एशियाई कुश्ती प्रतियोगिता में नरसिंह यादव ने देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाकर पूरे देश का नाम रोशन किया था। राष्ट्रमंडल खेलों की निशानेबाजी स्पर्धा में कविता यादव ने सुमा शिरूर के साथ कांस्य पदक जीतकर नाम गौरवान्वित किया। विश्व मुक्केबाजी (1994) में कांस्य पदक विजेताब्रिटेन में पाकेट डायनामो के नाम से मशहूर भारतीय फ्लाईवेट मुक्केबाज धर्मेन्द्र सिंह यादव ने देश में सबसे कम उम्र में अर्जुन पुरस्कार’ प्राप्त कर कीर्तिमान बनाया। विकास यादवमुक्केबाजी का चर्चित चेहरा है। आन्ध्र प्रदेश के बिलियर्डस व स्नूकर खिलाड़ी सिंहाचलम जो कि बिलियर्ड्स के अन्तर्राष्ट्रीय रेफरी भी हैंबीजिंग ओलंपिक में निशानेबाजी के राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे श्याम सिंह यादव,कुश्ती में पन्ने लाल यादवश्यामलाल यादवगंगू यादव जैसे तमाम खिलाड़ी यादवों का नाम रोशन कर रहे हैं। बनारसी मुक्केबाज छोटेलाल यादव ने सैफ खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया। जानी-मानी पर्वतारोही संतोष यादव जिन्दगी में मुश्किलों के अनगिनत थपेड़ों की मार से भी विचलित नहीं हुईं और अपनी इस हिम्मत की बदौलत वह माउंट एवरेस्ट की दो बार चढाई करने वाली विश्व की पहली महिला बनीं। इसके अलावा वे कांगसुंग ;ज्ञंदहेीनदहद्ध की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला भी हैं। उन्हांेने पहले मई 1992 में और तत्पश्चात मई सन् 1993 में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त कीे। इण्डियन ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश कालमाड़ी यदुवंश से ही हैं। अर्जुन पुरस्कार विजेता व महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान मधु यादव राष्ट्रीय महिला हाकी टीम की मैनेजर हैं। भारतीय भारोत्तोलन संघ के सचिव सहदेव यादव है।
अभिनय -
अभिनय से परे भी तमाम यदुवंशी अपनी प्रतिभा का परचम फहरा रहे हैं। अभिनय की दुनिया में राजपाल यादव, रघुवीर यादव, आदित्य पंचोली ने अच्छा मुकाम हासिल किया है | बालीवुड में बहुचर्चित सेक्स स्कैंडल में फंसी मिस जम्मू अनारा गुप्ता के स्कैंडल और विवादित जीवन पर केके. फिल्म्स क्रिएशन तले निर्माता-निर्देशक कृष्ण कुमार यादव ने मिस अनारा फिल्म बनाकर चर्चा बटोरी थी। पहले शब्द’ और फिर महानायक अमिताभ बच्चन और ऑस्कर विजेता अभिनेता बेन किंग्सले को लेकर निर्मित फिल्म तीन’ पत्ती की निर्देशक लीना यादव से लेकर संगीता अहीर (प्रोड्यूसर-अपनेवाह लाइफ हो तो ऐसी) तक फिल्मों का सफल निर्माण और निर्देशन कर रही हैं। ननहें जैसलमेर‘ फिल्म में बाबी देओल के साथ 10 वर्षीय बाल अभिनेता द्विज यादव ने अपनी भूमिका से लोगों का ध्यान खींचा। यदुवंशियों का दबदबा दक्षिण भारत की फिल्मों में भी दिखता है। इनमें प्रमुख रूप से कासी (तमिल अभिनेता)पारूल यादव (तमिल अभिनेत्री),माधवी (अभिनेत्री)रमेश यादव (कन्नड़ फिल्म प्रोड्यूसर)नरसिंह यादव (तेलगू अभिनेता)अर्जुन सारजा (अभिनेतानिर्देशक-निर्माता)विजय यादव (तेलगू टी.वी.अभिनेता) जैसे तमाम चर्चित नाम दिखते हैं। पारुल यादव फिलहाल भाग्यविधाता और बाहुबलि जैसे हिन्दी धारावाहिकों में भी अभिनय कर रही है। इसके अलावा भी तमाम यदुवंशी विभिन्न धारावाहिकों में कार्य कर रहे हैं।
भोजपुरी फिल्मों में आजकल तमाम यदुवंशी सामने आने लगे हैं। भोजपुरी के जुबली स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ चार साल में 50 लाख रू. की प्राइज वाले जुबली स्टार हैं। उनकी अब तक रिलीज 22 फिल्मों में से गोल्डन जुबली, 4 सिल्वर जुबली, 13 सुपर हिट, 2 औसत और मात्र एक फ्लॉप रहीं। बचपन से फिल्मों के दीवाने रहे दिनेश लाल यादव रात को तीन किमी दूर वीडियो पर फिल्म देखने जाते थेकुछ साल गायकी में संघर्ष करने के बाद 2003 में टी सीरीज के निरहुआ सटल रहे‘ ने उन्हें लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचा दिया और निरहुआ’ उनके नाम के साथ चिपक गया।2005 में फिल्म हमका अहइसा वइसा न समझा‘ में उन्हें बतौर हीरो मौका मिला और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिनेश लाल यादव निरूहा‘ ने भोजपुरी फिल्मों को विदेशों तक फैलाकर भारतीय संस्कृति का डंका दुनिया में बजाया है। खेसारी लाल यादव (छपरा, बिहार) भी एक लोकप्रिय भोजपुरी अभिनेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं और भोजपुरी सिनेमा में उनका भी डंका बज रहा है | बिरहा गायकी में अपना सिक्का जमा चुके विजय लाल यादव ने भी अभिनय के क्षेत्र में कदम रखते हुए कई फिल्मों में काम किया हैबतौर मुख्य अभिनेता उनकी पहली फिल्म बियाह-द फुल इंटरटेनमेंट‘ रही है। इस कड़ी में अब फिल्म दिल तोहरे प्यार में पागल हो गइल‘ के माध्यम से एक नए अभिनेता सोम यादव (भदोही) का आगाज हुआ है। जी नाइन इंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक भी यदुवंश के ही कमलेश यादव और राजनारायण यादव हैं। इस फिल्म में सोम यादव के साथ नायिका रूप में हैंअनारा गुप्ता जिसे फिल्म निर्माता के.के. यादव ने अपनी फिल्म अनारा के माध्यम से कास्ट किया था। इसी प्रकार भोजपुरी फिल्म कबहू छूटे ना ई साथ‘ में अनिल यादव मुख्य भूमिका में है। सुन सजना सुन’ में दिनेश अहीर स्पेशल भूमिका में हैं तो इस फिल्म के सह-निर्माता मुन्ना यादव हैं। ईधर दिल्ली में सेक्स रैकेट चलाने वाले बाबा शिवमूर्ति द्विवेदी पर बन रही फिल्म सुहागन की कोख’ के निर्देशक राधेश्याम यादव हैं। गीतकार प्यारेलाल यादव भी तेजी से अपने कदम बढ़ा रहे हैं। पहली बार यदुवंश से मिस इण्डिया चुनी गई एकता चौधरी ने एक नजीर गढ़ी है। गौरतलब है कि वर्ष 2009 में मिस इंडिया यूनिवर्स चुनी गयी एकता चौधरी यदुवंशी हैं। यह पहला मौका था जब ग्लैमर की दुनिया में यदुवंश से कोई इस मुकाम पर पहुंचा। एकता चौधरी दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री चैधरी ब्रह्म प्रकाश की पौत्री और सिद्धार्थ चौधरी की सुपुत्री हैं। इसी प्रतियोगिता में फाइनल में स्थान पाकर आकांक्षा यादव भी चर्चा में रहीं और मिस बोल्ड‘ के खिताब से नवाजी गईं। इससे पूर्व वर्ष 2008 में मनीषा यादव मिस इंडिया की चर्चित प्रतिभागी रही हैं। ज़ी.टी.वी. पर आयोजित सारेगामापा प्रतियोगिता में स्थान पाकर लखनऊ की पूनम यादव भी चर्चा में रहीं।



भारतीय प्रशासनिक सेवा में यादव अधिकारी-
(2013 की सूची के अनुसार)
    1.      राजीव यादव - यूपी कैडर के अधिकारी
    2.      अजय यादव
    3.      सुनील कुमार यादव
    4.      पंकज यादव
    5.      डॉ. अनूप कुमार यादव
    6.      राजेश कुमार यादव
    7.      अरुण यादव
    8.      प्रदीप यादव
    9.      धर्मेन्द्र प्रताप यादव
   10.   संतोष कुमार यादव
   11.   राम मोहन यादव
   12.   पंधारी यादव
   13.   अनुराग यादव
   14.   प्राण जाल यादव
   15.   सुशिल कुमार यादव
   16.   इंद्रवीर सिंह यादव
   17.   पुनीत यादव
   18.   डॉ. अश्विनी कुमार यादव
   19.   अरविन्द देव
   20.   विवेक यादव
   21.   चंदेश कुमार यादव
   22.   सुबोध यादव 
   23.   अमित यादव
  24.  नितिन कुमार यादव- हरियाणा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
  25.  अभय सिंह यादव - हरियाणा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
  26.  सज्जन सिंह यादव - हरियाणा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
  27.  जीतेन्द्र यादव - हरियाणा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
  28.  अशोक कुमार यादव
  29.  संदीप यादव
  30.  डॉ बिरेन्द्र कुमार यादव – बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
    31.   महावीर प्रसाद - बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
    32.   चंचल यादव – दिल्ली कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी
    33.   मिस वंदना यादव - दिल्ली कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी
    34.   अश्विनी कुमार -
    35.  श्री वीर विक्रम यादव – राजस्थान कैडर के अधिकारी
    36.   भुवनेश यादव –
    37.   राजेश यादव –
    38.   ओमप्रकाश यादव –
    39.   राज कुमार यादव –
    40.   आर. एम्. यादव – गुजरात कैडर के अधिकारी
    41.   सचिन आर. जादव – महाराष्ट्र कैडर के अधिकारी
    42.   भारत यादव – मध्य प्रदेश कैडर के अधिकारी
    43.   अजय सिंह यादव –
    44.   बिनोद सिंह बघेल –
    45.   राजीव यदुवंशी – कर्नाटक कैडर के अधिकारी
   46.   प्रदीप नारायण – केरल कैडर के अधिकारी  
   47.   वी. एन. विष्णु – आन्ध्र प्रदेश कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी 
   48.   कवेटी विजयानंद – आन्ध्र प्रदेश कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी
   49.   बी. उदय लक्ष्मी – आन्ध्र प्रदेश कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी
   50.   कृष्णैया - आन्ध्र प्रदेश कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी
   51.   एन. वासुदेवन – तमिलनाडु कैडर के अधिकारी
    52.   सी. शेंथिल पांडियन –

    53.   प्रो. जी. रघुनाथन 

(साभार इन्टरनेट पर उपलब्ध यादव से सम्बंधित विभिन्न सामग्री - यथा "यदुकुल" आदि )

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुंदर jankari