सोमवार, 28 अगस्त 2017

जरुरत है जागरूकता की.. विवेक पैदा करने की

विचारणीय !



एक सवाल आज शाम से ही कौंध रहा है..........कौन लोग होते हैं बाबाओं के लिए बेसुध होकर रोने वाले.. संतों के लिए कुछ भी फूंकने वाले.. किसी देवी माँ का फाइव स्टार आशीर्वाद लेने वाले. किसी के लिए अपनी जान तक दे देने वाले. बाबा की हरी चटनी खाकर अरबपति बन जाने वाले..?
कुछ जबाव भी सामने आ रहे है!
दरअसल इस भीड़ के मूल में दुःख है.. अभाव है.. गरीबी है.. और शारीरिक मानसिक शोषण है.. अहंकार के साथ कुछ हो जाने की तमन्ना है.
एक ऐसा विश्वास है जिस पर आडंबरों की फसल लहलहाती है.. आप जरा ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि ऐसे भक्तों की संख्या में ज्यादा संख्या महिलाओं, गरीबों, दलितों और शोषितों की है.. इनमें कोई अपने बेटे से परेशान है तो कोई अपने बहू से किसी का जमीन का झगड़ा चल रहा तो किसी को कोर्ट-कचहरी के चक्कर में अपनी सारी जायदाद बेचनी पड़ी है. किसी को सन्तान चाहिए किसी को नौकरी!

यानी हर आदमी एक तलाश में है.. ये भीड़ रूपी जो तलाश है. ये धार्मिक तलाश नहीं है. ये भौतिक लोभ की आकांक्षा में उपजी प्रतिक्रिया है.

जिसे स्वयँ की तलाश होती है वो उसे भीड़ की जरूरत नहीं उसे तो एकांत की जरूरत होती है..
वो किसी रामपाल के पास नहीं, किसी राम कृष्ण परमहंस के पास जाता है.. वो किसी राम रहीम के पास नहीं.. रामानन्द के पास जाता है.. उसे पैसा, पद और अहंकार के साथ भौतिक अभीप्साओं की जरूरत नहीं. उसे ज्ञान की जरुरत होती है..

गीता में भगवान कहते हैं..
न ही ज्ञानेन सदृशं पवित्रम – इह विद्यते

अर्थात ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है.. न ही गंगा न ही ये साधू संत और न ही इनके मेले और झमेले..

लेकिन बड़ी बात कि आज ज्ञान की जरूरत किसे हैं.. ? चेतना के विकास के लिए कौन योग दर्शन पढ़ना चाहता है.. कृष्णमूर्ति जैसे शुद्ध वेदांत के ज्ञाता के पास महज कुछ ही लोग जाते थे.. ऐसे न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं और कितने सिद्ध महात्माओं को तो हम जानते तक नहीं… यहाँ जो चेतना को परिष्कृत करने ध्यान करने और साधना करने की बातें करता है उसके यहां भीड़ कम होती है और जो नौकरी देने, सन्तान सुख देने और अमीर बनाने के सपने दिखाता है उसके यहाँ लोग टूट पड़ते हैं.. वहीं सत्य साईं बाबा के यहाँ नेताओं एयर अफसरों की लाइन लगी रहती थी, क्योंकि वो हवा से घड़ी, सोने की चैन, सोने शिवलिंग प्रगट कर देते थे, राख और शहद बांट रहे थे.

क्या ताज्जुब है कि जो साईं बाबा पूरे जीवन फकीरी में बिता दिए. उनकी मूर्तियों में सोने और हीरे जड़ें हैं.. जिस बुद्ध ने धार्मिक आडम्बरो को बड़ा झटका दिया संसार मे उन्हीं की सबसे ज्यादा मूर्तियां हैं.

दरअसल ये सब अन्धविश्वास एक दिन में पैदा नहीं होता, ये पूरा एक चक्र है.. जरा ध्यान से टीवी देखिये, रेडियो सुनिये, तो हम क्या देख रहें हैं..क्या सुन रहें हैं.. अन्धविश्वास ही तो देख रहें हैं.. वही तो सुन रहे हैं… यानी ठंडा मन कोकाकोला होता है, फलां बनियान पहन लो लड़कियां तुम्हारे लिए सब कुछ कर देंगी, ये इत्र लगाओ तो लड़कियां तुम्हारे लिए मर जाएंगी, इस कम्पनी की चड्ढी पहन लो तो गुंडे अपने आप भाग जाएंगे, ये पान मसाला खाओ स्वास्थ्य इतना ठीक रहेगा कि दिमाग खुल जाएगा..

ये सब बेवकूफियों पर रोक लगनी चाहिए या नहीं.. तभी हम चाहें कोई आर्थिक बाजार हो या धार्मिक बाजार इससे बच सकतें हैं.. ये धार्मिक गुरु जो होतें हैं.. ये काउंसलर होते हैं. ये धार्मिक एडवर्टाइजमेंट करते हैं।..जहां आदमी का विवेक शून्य हो जाता है..और आप वही करने लगतें हैं जो आपके अवचेतन में भर दिया जाता है..

आज जरुरत है जागरूकता की.. विवेक पैदा करने की. जरा तार्किक बनने की और उससे भी ज्यादा ज्ञान की तलाश में भटकते रहने की.. वरना हम यूँ ही भटकते रहेंगे…

“आतम ज्ञान बिना नर भटके कोई मथुरा कोई काशी”

ऋते ज्ञानात न मुक्तिः

 अर्थात ज्ञान के बिना कोई मुक्ति नहीं है
:साभार 

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

Rezang La War History

Rezang La War Story: रेज़ांगला युद्ध की अनसुनी वीरगाथा 






भारत में कम ही लोग हैं जो 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध को याद करना पसंद करते हैं. वजह साफ है… 1962 के युद्ध के घाव इतने गहरे हैं कि कोई भी देशवासी उसको कुरेदना नहीं चाहता. यहां तक की भारतीय सेना भी उस युद्ध के बारे में ज्यादा बात करती नहीं दिखती. लेकिन ऐसा नहीं है कि 1962 युद्ध ने सिर्फ हमें घाव ही दिए हैं. उस युद्ध ने हमें ये भी सिखाया है कि विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिक बहादुरी से ना केवल लड़ना जानते हैं, अपनी जान तक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए न्यौछावर नहीं करते हैं, बल्कि दुश्मन के दांत भी खट्टे करना जानते हैं.

1962 युद्ध के दौरान लद्दाख के रेज़ांग-ला में भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों से जो लड़ाई लड़ी थी उसे ना केवल भारतीय फौज बल्कि चीन के साथ-साथ दुनियाभर की सेनाएं भी एक मिसाल के तौर पर देखती हैं और सीख लेना नहीं भूलती.

चीन का तिब्बत पर हमला, फिर कब्जा और दलाई लामा के भागकर भारत में राजनैतिक शरण लेने के बाद से ही भारत और चीन के रिश्तों में बेहद खटास आ चुकी थी. ऐसे में चीन की लद्दाख में घुसपैठ और कई सीमावर्ती इलाकों में कब्जा करने के बाद भारतीय सेना ने भी इन इलाकों में अपनी फॉरवर्ड-पोस्ट बनानी शुरु कर दी थी. भारत का मानना था कि चीन इन सीमावर्ती इलाकों में अपनी पोस्ट या फिर सड़क बनाकर इसलिए अपना अधिकारी जमा रही थी क्योंकि ये इलाके खाली पड़े रहते थे. सालों-साल से वहां आदमी तो क्या परिंदा भी पर नहीं मारता था, इसी का फायदा उठाया चीन ने. जिसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इन ठंडे रेगिस्तान और बंजर पड़े लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में अपनी पोस्ट बनाने की आज्ञा दी—जिसे आस्ट्रैलियाई पत्रकार एन. मैक्सवेल ने अपनी किताब ‘इंडियाज चायना वॉर’ में नेहरु की ‘फॉरवर्ड-पोलिसी’  नाम देकर बदनाम करने की कोशिश की है.



लद्दाख के चुशुल इलाके में करीब 16,000 फीट की उंचाई पर रेज़ांगला दर्रे के करीब भारतीय सेना ने अपनी एक पोस्ट तैयार की थी. इस पोस्ट की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी कुमाऊं रेजीमेंट की एक कंपनी को जिसका नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतान सिंह. 123 जवानों की इस कंपनी में अधिकतर हरियाणा के रेवाड़ी इलाके के अहीर (यादव) शामिल थे. चीनी सेना की बुरी नजर चुशुल पर लगी हुई थी. वो किसी भी हालत में चुशुल को अपने कब्जे में करना चाहते थे. जिसके मद्देनजर चीनी सैनिकों ने भी इस इलाके में डेरा डाल लिया था.

इसी क्रम में जब अक्टूबर 1962 में लद्दाख से लेकर नेफा (अरुणाचल प्रदेश) तक भारतीय सैनिकों के पांव उखड़ गए थे और चीनी सेना भारत की सीमा में घुस आई थी, तब रेज़ांग-ला में ही एक मात्र ऐसी लड़ाई लड़ी गई थी जहां भारतीय सैनिक चीन के पीएलए पर भारी पड़ी थी.

17 नवम्बर चीनी सेना ने रेज़ांग-ला में तैनात भारतीय सैनिकों पर जबरदस्त हमला बोल दिया. चीनी सैनिकों ने एक प्लान के तहत रेज़ांग-ला में तैनात सैनिकों को दो तरफ से घेर लिया, जिसके चलते भारतीय सैनिक अपने तोपों (आर्टिलेरी) का इस्तेमाल नहीं कर पाई. लेकिन .303 (थ्री-नॉट-थ्री) और ब्रैन-पिस्टल के जरिए भी कुमाऊं रेजीमेंट के ये 123 जवान चीनी सेना की तोप, मोर्टार और ऑटोमैटिक हथियारों जिनमें मशीन-गन भी शामिल थीं, मुकाबला कर रहे थे. इन जवानों ने अपनी बहादुरी से बड़ी तादाद में चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन चीनी सेना लगातार अपने सैनिकों की मदद के लिए रि-इनफोर्समेंट भेज रही थी.

मेजर शैतान सिंह खुद कंपनी की पांचों प्लाटून पर पहुंचकर अपने जवानों की हौसला-अफजाई कर रहे थे. इस बीच कुमाऊं कंपनी के लीडर मेजर शैतान सिंह गोलियां लगने से बुरी तरह जख्मी हो गए. दो जवान जब उन्हे उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे तो चीनी सैनिकों ने उन्हे देख लिया.

परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) मेजर शैतान सिंह

शैतान सिंह अपने जवानों की जान किसी भी कीमत पर जोखिम में नहीं डाल सकते थे. उन्होनें खुद को सुरक्षित स्थान पर ले जाना से साफ मना कर दिया. जख्मी हालत में शैतान सिंह अपने जवानों के बीच ही बने रहे. वहीं पर अपनी बंदूक को हाथ में लिए उनकी मौत हो गई.

दो दिनो तक भारतीय सैनिक चीनी पीएलए को रोके रहे. 18 नवम्बर को 123 में से 109 जवान जिनमें कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भी शामिल थे देश की रक्षा करते मौत को गले लगा चुके थे. लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि भारतीय सैनिकों की गोलियां तक खत्म हो गईं. बावजूद इसके बचे हुए जवानों ने चीन के सामने घुटने नहीं टेकें.

भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनेलिसेस विंग) के पूर्व अधिकारी आर के यादव ने अपनी किताब ‘मिशन आर एंड डब्लू’ में रेज़ांगला की लड़ाई का वर्णन करते हुए लिखा है कि इन बचे हुए जवानों में से एक सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दिया. मल्ल-युद्ध में माहिर कुश्तीबाज सिंहराम ने एक-एक चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दिया. इस तरह से उसने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया.

गीतकार प्रदीप द्वारा लिखा गया देशप्रेम से ओतप्रोत गाना जिसे लता मंगेशकर ने गाकर अमर कर दिया था दरअसल वो रेज़ागला युद्ध को ध्यान में ही रखकर शायद रचा गया था.

गीत के बोल कुछ यूं हैं, “….थी खून से लथपथ काया, फिर भी बंदूक उठाके दस-दस को एक एक ने मारा, फिर गिर गये होश गंवा के. जब अंत समय आया तो कह गये के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैं. क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वे अभिमानी जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी….”

बताते है कि चीन ने इस लड़ाई में पांच भारतीय जवानों को युद्धबंदी बना लिया था जबकि नौ जवान बुरी तरह घायल हो हुए थे.

भारतीय सैनिकों की बहादुरी से हारकर चीनी सैनिकों ने अब पहाड़ से नीचे उतरने का साहस नहीं दिखाया. और चीन कभी भी चुशुल में कब्जा नहीं कर पाया. हरियाणा के रेवाड़ी स्थित इन अहीर जवानों की याद में बनाए गए स्मारक पर लिखा है कि चीन के 1700 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था और चीनी सेना को रेज़ांगला में भारी नुकसान उठाना पड़ा.


वीरगति को प्राप्त हुए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े पदक परमवीर चक्र से नवाजा गया. मेजर शैतान सिंह और उनके वीर अहीर जवानों की याद में चुशुल के करीब रेज़ांगला में एक युद्ध-स्मारक बनवाया गया. हर साल 18 नवम्बर को इन वीर सिपाहियों को पूरा देश और सेना याद करना नहीं भूलती है. क्योंकि “शहीदों की चितांओं पर लगेंगे हर बरस मेले…देश में मर-मिटने वालों का बस यही एक निशां होगा…”