सोमवार, 8 मई 2017

जैसा दोगें वैसा ही लौट कर थाली में वापिस आएगा

जैसा दोगें वैसा ही लौट कर थाली में वापिस आएगा



एक बार एक सर्वगुणी राजा घोड़े के तबेलें में घुमनें में व्यस्त थे तभी एक साधु भिक्षा मांगने के लिए तबेलें में ही आए और राजा से बोले  "मम् भिक्षाम् देहि..!!" राजा ने बिना विचारे तबेलें से घोडें की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी। राजा ने यह भी नहीं विचारा कि इसका परिणाम कितना दुखदायी होगा। साधु भी शांत स्वभाव होने के कारण भिक्षा ले वहाँ से चले गए। और कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी। कुछ समय उपरान्त राजा उसी जंगल में शिकार वास्ते गए। राजा ने जब जंगल में देखा एक कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का ढेर लगा था। उसने देखा कि यहाँ तो न कोई तबेला है और न ही दूर-दूर तक कोई घोडें दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्यचकित हो कुटिया में गए और साधु से बोले "महाराज! आप हमें एक बात बताइए यहाँ कोई घोड़ा भी नहीं न ही तबेला है तो यह इतनी सारी घोड़े की लीद कहा से आई !" साधु ने कहा " राजन्! लगता है आपने हमें पहचाना नही! यह लीद तो आपकी ही दी हुई है!" यह सुन राजा ने उस साधु को ध्यान से देखा और बोले हाँजी महाराज! आपको हमने पहचान लिया। पर आप हमें एक बात का जवाब दीजिए हमने तो थोड़ी-सी लीद दी थी पर यह तो बहुत सारी हो गयी है इतनी सारी कैसे हो गयी कृपया कर हमें विस्तार से समझाइए। साधु ने कहा "आप जितनी भी भिक्षा देते है और जो भी देते है वह दिन-प्रतिदिन प्रफुल्लित हो जाती है यह उसी का परिणाम है। और जब हम यह शरीर छोड़ते है तो आपको यह सब खानी पड़ेगी।" राजा यह सब सुनकर दंग रह गया और नासमझी के कारण आँखों में अश्रु भर चरणों में नतमस्तक हो साधु महाराज से विनती कर बोले "महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिए मैं तो एक रत्ती भर लीद नहीं खा सकूँगा।आइन्दा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा।" कृपया कोई ऐसा उपाय बता दीजिए! जिससे मैं अपने कर्मों को वजन हल्का कर सकूँ!" साधु ने जब राजा की ऐसी दुखमयी हालात देखी तो उन्होंने कहा "राजन्! एक उपाय है जिसमें आपको ऐसा कारज करना है जिससे सभी प्रजाजन आपकी निंदा करें आपको ऐसा कोई कारज नहीं करना है जो गलत हो! आपको अपने को दूसरों की नज़र में गलत दर्शाना है बस!! और अपनी नजर में वह कारज आपने न किया हो।" यह सुन राजा ने महल में आ काफी सोच-विचार कर जिससे कि उनकी निंदा हो वह उसी रात एक वैश्या के कोठे पर बाहर ही चारपाई पर रात भर बैठ रात बिता जब सब प्रजाजन उठ गए तो वापिस आये तो सब लोग आपस में राजा की निंदा करने लगे कि कैसा राजा है कितना निंदनीय कृत्य कर रहा है क्या यह शोभनीय है ??  बगैरा-बगैरा!! इसप्रकार की निंदा से राजा के पाप की गठरी हल्की होने लगी। अब राजा दोबारा उसी साधु के पास गए तो घोड़े की लीद के ढेर को मुट्ठी भर में परवर्तित देख बोले "महाराज! यह कैसे हुआ? ढेर में इतना बड़ा परिवर्तन!!" साधू ने कहा "यह निंदा के कारण हुआ है राजन् आपकी निंदा करने के कारण सब प्रजाजनों में बराबर-बराबर लीद आप बँट गयी है जब हम किसी की बेवजह निंदा करते है तो हमें उसके पाप का बोझ उठाना होता है अब जो तुमने घोड़े की लीद हमें दी थी वह ही पड़ी ही वह तो आपको ही थाली में दी जायेगी। अब इसको तुम चूर्ण बना के खाओ, सब्जी में डाल के खाओ या पानी में घोलकर पीओ यह तो आपको ही खानी पड़ेगी राजन्! अपना किया कर्म तो हमें ही भुगतना है जी चाहे हँस के भुगतो या रो कर सब आप ही भोगना है।
"जैसा दोगें वैसा ही लौट कर थाली में वापिस आएगा!"

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